Tuesday, November 26, 2013

मनू अभी जिंदा है


२६ नवंबर १९४९ में इस देश की संविधान सभाने नये मानवतावादी संविधानको  स्वीकार किया ।   २६ जनवरी १९५० से इसको लागू किया गया … जिस देश मे हर कानून भगवान के नामसे वेदोन्के आधारसे चलाया जाता था उस देश का यह कानून लोगोन्द्वारा बनाया गया और स्वीकारा गया है । यह एक अपूर्व घटना थी । डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर की कडी मेहनत कि वजहसे यह संभव हुआ … बरसोन्से चलते आये मुलतत्ववादी , मनुवादी नीती नियामोन्से छुटकारा मिला … यही सही मायने मे स्वराज्य था , मनूवादियोन्को यह संविधान मंजूर नही है क्युंकी इसमे इंसानियत कि बात हुई है , सबको समान माना है , कई मनूवादी तो इसको अपने गुलामिका आरंभ मानते है । भगवान के नाम पर , धर्म के नाम पर चलनेवाला इनका राज जो चला गया ।
खैर , आज वही दिन है , आप सबको उसकी बहुत बहुत सदिच्छाये । आज के संविधान दिन के उपलक्ष में मै बहुत ही  चिंतीत हु , चिंता उनको लेकर नही जो इसको विरोध  करते है । चिंता उनको लेकर नही जिनका अंध साम्राज्य इस संविधानने नष्ट किया … बल्की चिंता का कारण वह लोक है जो इस संविधान के कारण प्रगती तो  कर रहे है लेकीन अपनेही मस्ती मै अपना इतिहास भूल रहे है । संविधान से प्राप्त अधिकारोन्के वजहसे जी राहे है पर संविधान निर्माता का नाम लेने से शरमा रहे है , संविधान निर्माताने दिखाये हुये पथ पर चलना छोड रहे है , सरकारी नौकारीया कर रहे है, पर इनको देनेवाले को भूल रहे है , नाम बाबा का और काम बापू का कर रहे है , चिंता उनको लेकर है जो अपने बच्चोको संविधान निर्माता महापुरुषसे दूर और सडे हुये काल्पनिक महापूरुषो   की ओर ले जा रहे है , जिस समाज से वह संविधान के आधार पर आगे आ सके उस समाज को भूल रहे है , जीन्होने बरसोसे गुलाम बनाकर रखा था उनके पैर की जुती बनने में लगे हुये है , चिंता उन पढे लिखे लोगोन्के बारेमे है जो अब पहले जैसा कूछ रहा नही , अब जागृती की जरुरत नही ऐसा मानने लगे है …और अपने आपसे झुठ बोल रहे है  ।
बाबासाहबने तो यह कहा था पढे लिखे लोगोने मुझे धोखा दिया … आज भी वही हो रहा है । पर आज पढे लिखे लोग बाबासाहाबको नही अपने आप को और अपने आनेवाले पिढी को  धोखा दे रहे है, मुझे ऐसा क्यू लगता  है , क्युंकी जो लोग इतिहास भुलते है वह इतिहास नही बना सकते यह बाबासाहबने कही हुई बात बहुत ही महत्वपूर्ण है । क्या कह रहा है इतिहास ? आज तक कितने राजा, सम्राट, बादशाह आके गये क्या उनका कार्यकाल दीर्घ काल रहा ? ५०० साल ६०० साल ? उससे ज्यादा ? नही ना क्या कारण थे यह सल्तनते मिठ्ठी होने की , आप गौर से देखेंगे तो पता चलेगा की 'अब सबखूछ ठीक है' यह मानकर रहना . जब आप सब कूछ ठीक है ऐसा मानते हो तब कही न कही आप नजरअंदाजी होती है  । शीत काल में पसीना नही बहाते इसलिये युद्धकाल में बहुत ज्यादा पसीनाउसको  पढता है … बस इसी कारण सल्तनते खत्म हुई । इस देश की बात करे तो मनूवादी, मूलतत्त्ववादी वक्त का इंतजार करता हुआ नजर आता है, वक्त मिलते ही वह हमला कर देता है ।
बस यही चिंता का कारण है , जो बहुजन आज इतिहाससे आनाकानी कर रहा है , सिर्फ अपने और अपने परिवार की सोच रहा ही , वह धोका खाने वाला है , यदी इन लोगोंका यही रवय्या रहा तो संविधानपर चलनेवाला यह देश कूछ सलोबाद फिर से मनुस्मृतीपर चलने लगेगा , और फिरसे बहुजानोंको शुद्र बनकर लानत की जिंदगी गुजार्नी होंगी ।  तब शायद हम सब नही रहेंगे, लेकिन अपने वारीस जरूर रहेंगे ।  वैसे तो मानुवादियोन्के हिसाबसे कलियुग चला है और इसमे ब्राह्मण छोडके बाकी सर्वजन शुद्र है।
आज देश में संविधान लागू होने  को १०० साल भी नही हुए है , फिर भी मानूवादी अपना अस्थित्त्व दिखा रहे है, तो आगे की समस्या बडी है। ऐसा कहते है की सैतान को जल्दी मौत नही आती है , बात एकदम सही है , मनू अभीभी जिंदा है । वह पुरी तरहसे मरा नही है , संविधानने उसे अधमरा किया है , मनूवादी उसको बचानेकी कोशिष में लगे हुए है और बहुजन वह मरा समजकर मस्त है । बस यही बात उसके लिये प्राणवायू का काम कर राही है । उसको मारना होगा पुरी तरह से मारना होंगा , जबतक उसकी अंतिम सांस चाल रही है, तब तक बहुजनोने चैन की सांस नही लेनी है । संविधान का हिथीयार अच्छा है लेकिन उसको सही ढंगसे चलानेवाले हातभी चाहिये ।  

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